जब हम शरीर छोड़ देते हैं तो कुछ लोग तुम्हें या मुझे भूतात्मा मान लेते हैं और कुछ लोग कहते हैं कि उक्त आत्मा का स्वर्गवास हो गया। 'मैं हूँ' यह बोध ही हमें आत्मवान बनाता है ऐसा वेद, गीता और पुराणों में लिखा है।
' न तो यह शरीर तुम्हारा है और न ही तुम इस शरीर के हो। यह शरीर पांच तत्वों से बना है- अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश। एक दिन यह शरीर इन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो जाएगा।'- गीता
वेद-पुराण और गीता अनुसार आत्मा अजर-अमर है। आत्मा एक शरीर धारण कर जन्म और मृत्यु के बीच नए जीवन का उपभोग करता है और पुन: शरीर के जीर्ण होने पर शरीर छोड़कर चली जाती है। आत्मा का यह जीवन चक्र तब तक चलता रहता है जब तक कि वह मुक्त नहीं हो जाती या उसे मोक्ष नहीं मिलता।
प्रत्येक व्यक्ति, पशु, पक्षी, जीव, जंतु आदि सभी आत्मा हैं। खुद को यह समझना कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूं। यह आत्मज्ञान के मार्ग पर रखा गया पहला कदम है।
84 लाख योनियां : पशु योनि, पक्षी योनि, मनुष्य योनि में जीवन-यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चली जाती हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां हैं, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं।
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जीवात्मा 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जन्म पाती है। 84 लाख योनियां निम्नानुसार मानी गई हैं- पेड़-पौधे- 30 लाख, कीड़े-मकौड़े- 27 लाख, पक्षी- 14 लाख, पानी के जीव-जंतु- 9 लाख, देवता, मनुष्य, पशु- 4 लाख, कुल योनियां- 84 लाख।
आत्मा शरीर को कैसे त्याग करती है
शरीर साधारणत: वृद्धावस्था में जीर्ण होने पर नष्ट होता है, परंतु बीच में ही कोई आकस्मिक कारण उपस्थित हो जाए तब अल्पायु में ही शरीर त्यागना पड़ता है। जब मनुष्य मरने को होता है, तो उसकी समस्त बाहरी शक्तियां एकत्रित होकर अंतरमुखी हो जाती हैं और फिर आत्मा स्थूल शरीर से बाहर निकल पड़ती है।
मुख, नाक, आंख, कान प्राण उत्सर्जन के प्रमुख मार्ग हैं। दुष्ट-वृत्ति के लोगों के प्राण मल-मूत्रों के मार्ग से निकलते देखे गए हैं। योगी और सत्कर्म में रत आत्मा ब्रह्म-रन्ध्र से प्राण त्याग करती है।
शरीर छोड़ने के बाद आत्मा क्या करती है...
मृतात्मा स्थूल शरीर से अलग होने पर सूक्ष्म शरीर में प्रविष्ट कर जाती है। यह सूक्ष्म शरीर ठीक स्थूल शरीर की ही बनावट का होता है, जो दिखाई नहीं देता। खुद मृतात्मा को भी इस शरीर के होने की बस अनुभूति होती है लेकिन कुछ आत्माएं ही इस शरीर को देख पाती हैं।
इस दौरान मृतक को बड़ा आश्चर्य लगता है कि मेरा शरीर कितना हल्का हो गया है और मैं हवा में पक्षियों की तरह उड़ सकता हूं। स्थूल शरीर छोड़ने के बाद आत्मा अपने मृत शरीर के आसपास ही मंडराता रहता है। उसके शरीर के आसपास एकत्रित लोगों के वह कुछ कहना चाहता है लेकिन कोई उसकी सुनता नहीं है।
मृत आत्मा खुद को मृत नहीं मानकर अजीब से व्यवहार भी करता है। वह अपने अंग-प्रत्यंगों को हिलाता-डुलाता है, हाथ-पैर को चलाता है, पर उसे ऐसा अनुभव नहीं होता कि वह मर गया है। उसे लगता है कि शायद यह स्वप्न चल रहा है लेकिन उसका भ्रम मिट जाता है तब वह पुन: मृत शरीर में घुसने का प्रयास करता है लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो पाता।
जब तक मृत शरीर की अंत्येष्टि क्रिया होती है, तब तक जीव बार-बार उसके शरीर के पास मंडराता रहता है। जला देने पर वह उसी समय निराश होकर दूसरी ओर मन को लगाने लग जाता है, किंतु गाड़ देने पर वह उस शरीर का मोह नहीं छोड़ पाता और बहुत दिनों तक उसके इधर-उधर फिरा करता है।
अधिक माया-मोह के बंधन में अधिक दृढ़ता से बंधे हुए मृतक प्राय: श्मशानों में बहुत दिनों तक चक्कर काटते रहते हैं। शरीर की ममता बार-बार उधर खींचती है और वे अपने को सम्भालने में असमर्थ होने के कारण उसी के आस-पास रुदन करते रहते हैं। कई ऐसे होते हैं जो शरीर की अपेक्षा प्रियजनों से अधिक मोह करते हैं। वे मरघटों के स्थान पर प्रिय व्यक्तियों के निकट रहने का प्रयत्न करते हैं।
इस मामले में उनकी धारणा कार्य करती है कि वह किस तरह की धारणा और विश्वास लेकर मरे हैं।
मरने या शरीर छोड़ने के बाद कहां जाती है आत्मा.
पुराणों के अनुसार जब भी कोई मनुष्य मरता है या आत्मा शरीर को त्यागकर यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे तीन प्रकार के मार्ग मिलते हैं। उस आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है। ये तीन मार्ग हैं- अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग।
अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है। हालांकि सभी मार्ग से गई आत्माओं को कुछ काल भिन्न-भिन्न लोक में रहने के बाद पुन: मृत्युलोक में आना पड़ता है। अधिकतर आत्माओं को यहीं जन्म लेना और यहीं मरकर पुन: जन्म लेना होता है।
यजुर्वेद में कहा गया है कि शरीर छोड़ने के पश्चात, जिन्होंने तप-ध्यान किया है वे ब्रह्मलोक चले जाते हैं अर्थात ब्रह्मलीन हो जाते हैं। कुछ सत्कर्म करने वाले भक्तजन स्वर्ग चले जाते हैं स्वर्ग अर्थात वे देव बन जाते हैं। राक्षसी कर्म करने वाले कुछ प्रेत योनि में अनंतकाल तक भटकते रहते हैं और कुछ पुन: धरती पर जन्म ले लेते हैं। जन्म लेने वालों में भी जरूरी नहीं कि वे मनुष्य योनि में ही जन्म लें। इससे पूर्व ये सभी पितृलोक में रहते हैं वहीं उनका न्याय होता है।
सामान्यजनों ने देह त्यागी है तो इस मामले में उनकी धारणा कार्य करती है कि वे किस तरह की धारणा और विश्वास लेकर मरे हैं तब वे उसी अनुसार गति करते हैं। जैसे बचपन से यह धारणा मजबूत है कि मरने के बाद कोई यमदूत लेने आएंगे तो उसे सच में ही यमदूत नजर आते हैं, लेकिन जिनको यह विश्वास दिलाया गया है कि मरने के बाद व्यक्ति गहरी नींद में चला जाता है तो ऐसे लोग सच में ही नींद में चले जाते हैं